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कई दिन ऐसे ही चला दूध के बिना उसे चाय अच्छी नही लगती थी । बच्चे भी दूध दही के बिना मन से खाना नही खाते थे । अब शोभा परेशान थी उसने सोचा था कि गाय के बेचने से जो पैसे मिलेगे वह उससे अपने लिये हार बनवाएगी , अभी यही सोच ही रही थी कि ऊषा वहा आई ।
ऊषा – क्या हुआ गाय बेचीं नही
शोभा – नही वो उसे बेचना ही नही चाहते है
ऊषा – तुम्हारे हार का क्या होगा ,
शोभा ने ऊषा को बताया कि गाय का सारा दूध अब बेच देते है घर पर चाय के लिये भी दूध नही छोड़ते है उसने शोभा को राय दी कि तुम अपने हार के लिये दूध का पैसा मांगो यदि न दे तो गाय को बेचने के लिये कहो
शोभा ने वैसा ही किया ।
शोभ – जी मुझे हार खरीदना है आप मुझे दूध वाले पैसे दे दो ।
रामप्रसाद मै वो पैसे तो नही दूगाँ उससे मे एक और गाय खरीदूगा , और तुम्हारे पास तो गहने है फिर क्या करोगी हार का ,
शोभा – कहा है तुम उनको गहने कहते हो ,सबके पास कितने अच्छे अच्छे गहने है , ऊषा ने भी अभी नया हार ख़रीदा है । आप मुझे दूध के पैसे दो या ये गाय बेच कर पैसे दो मुझे बस हार खरीदना है।
रामप्रसाद- तो तुमको उसने ये राय दी है …. गाय बेचने कि, गाय बेच कर हार खरीदना कहा की अक्लमंदी है ।
शोभा–( गुस्से मे थी ) – हाँ दी तो क्या गलत किया
रामप्रसाद – मास्टर साहब ने सही कहा था हरीया गाय खरीदना चाहता था । उसने अपनी बीबी को तुम्हारे पास भेजा तुमको बहका कर गाय को बेचवाना चाहते थे । तुम उसकी बातो मे आ गई, अब समझ मे आ गया, हमारी गाय पूरे इलाके मे सबसे अधिक दूध देती है , गाय के दूध से कितने फायदे है कभी सोचा है साग सब्जी का खर्च बच जाता है । अगर गाय बेच देगे तो कहा से लायेगे इतने पैसे की बच्चो को दूध दही और घी खिला सके।
रामप्रसाद की बाते सुन कर शोभा की समझ मे आ गया उसके दिमाग मे ये तो आया ही नही , पन्द्रह दिन से घर मे दूध वाली चाय नही बनी और न ही बच्चो ने मन से खाना ही खाया । वो भी तो दिन भर घर पर ऐसे ही बैठी रहती क्योंकि गाय का सारा काम रामप्रसाद खुद करता था ।
मास्टर साहब – (बाहर से आवाज लगाई ) रामप्रसाद
रामप्रसाद बाहर आया , रामप्रसाद ने मास्टर साहब का शुक्रिया अदा किया ।
रामप्रसाद – मास्टर साहब आप कि वजह से आज मेरी गाय रह गई नही तो मै इतनी अच्छी गाय बेच देता ।
Moral of the story :-
हमें दूसरों की सलाह पर अमल करने से पहले अपनी समझ का इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिए !
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