तीन बेटियों के बाद सुमन ने घर के चिराग को जन्म दिया । आखिरकार सबकी मुरादें पूरी हुई । बड़े ही धूमधाम से बेटे के आने का जश्न मनाया गया । सुमन का बेटा उसकी आंखों का तारा था । उसने अपने बेटे का नाम राजा रखा ।
राजा के पिता उसके जन्म के समय, वहां नहीं थे । वे सेना में बड़े अफसर थे । ऐसे में छुट्टी न मिल पाने के कारण उनका आना संभव न हो सका । करीब दस महीने बाद आज पहली बार राजा के पिता अपने लाल को देखने घर वापस आ रहे थे । घर आते ही पिता ने सबसे पहले अपने लाल को गले लगाया । बेटा अब थोड़ा बड़ा हो चुका था ।
हर इकलौते पुत्र की भांति, राजा का मान जान भी, एक राजा जैसा ही था । उसकी मां उसे एक पल के लिए भी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहती । हर दिन खाना बेटे की पसंद से ही बनता । उपहार तो उसके लिए आम बात थी । तकरीबन रोज, मां उसके लिए चॉकलेट लाती । उधर बेटे के आने के बाद तीनों बेटीयों की हालत तो पराए या सौतेलों जैसी हो गई थी ।
घर में जो कुछ भी आता वह पहले पुत्र के हाथों पे रखा जाता है जो उससे बचता या जो राजा बेटा को नहीं पसंद आता, उसमें वे तीनों भोग लगाती । अब पसंद नापसंद तो बस बेटे की रह गई थी । बेटीयो की तो अब न कोई पसंद थी और ना ही कोई नापसंद, जैसे-जैसे बेटा बड़ा होने लगा उसकी फरमाइशें भी बढ़ने लगी क्योंकि सारा पैसा तो पुत्र के लिए ही था और वैसे भी उस घर में पैसों की कोई कमी तो थी नहीं तो बेटा जो कह देता अगले पल वह उसकी आंखों के सामने हाजिर हो जाता ।
पंडित जी ने उसके जन्म के समय शायद ठीक ही कहा था कि लड़का बड़ा भाग्यशाली है । हर फरमाइश के पूरा हो जाने से, धीरे धीरे उसकी ये फरमाइशें न जाने कब जिद्द में बदल गई । अगर उसकी कोई भी बात नहीं मानी जाती तो सारा घर वह सर पर उठा लेता । अब समय था बेटे के स्कूल जाने का । शहर के सबसे जाने माने पब्लिक स्कूल मे दाखिला कराया गया जो कि महंगा भी बहुत था ।
वही तीनों बेटियों को सरकारी स्कूलों में ही निपटा दिया गया था । पब्लिक स्कूल के लिए तो तब कभी सोचा भी नहीं गया । स्कूल बैग से लेकर सब कुछ खरीद लिया गया । अब बारी थी बेटे के स्कूल जाने की अगले दिन बेटे को खूब अच्छे से तैयार करके टिफिन में उसका फेवरेट गाजर का हलवा भरकर मां उसे स्कूल छोड़ने गई । राजा भी बहुत खुशी खुशी हाथों में चॉकलेट लिए, झूमता कभी माँ के गालों को चूमता, स्कूल पहुंचा ।
स्कूल के गेट पर, माँ ने उसे जैसे ही अपनी गोद से नीचे उतारकर, स्कूल के अंदर भेजना चाहा । उसने अपने शरीर को एकदम से कड़ा कर लिया और “स्कूल नहीं जाऊंगा” की जिद्द करने लगा । मां के बहलाने फुसलाने पर बेटे ने चॉकलेट फेंक, गले में लटका बोतल जोर से सड़क पर पटक दिया । काफी महंगी मिली बोतल के अंदर का शीशा टूटकर चकनाचूर हो गया ।
अभी माँ बोतल उठाती की लाडले ने अपना स्कूल बैग भी बीच सड़क पर फेंक दी जो कि सामने से आ रही, कार के नीचे आते-आते बची, उसका चेहरा गुस्से से एकदम लाल हो उठा । इतना सब कुछ हुआ पर सुमन के चेहरे पर क्रोध की छाया भी न पड़ सकी । बेटे के फेके समान उठाकर वह, वापस बेटे को स्कूल मे जाने के लिए, मनाने चली आई ।
मगर बेटा था कि स्कूल के सामने ही खड़ा स्कूल न जाने की जिद पर अडा रहा । वह जिद्दी तो पहले ही बन चुका था। मगर धीरे-धीरे अब वो शायद मनबड़ भी हो चुका था शायद यह सब सुमन के अत्यधिक लाड प्यार का ही नतीजा था बातों-बातों में सुमन ने पूछा
“अच्छा बताओ क्या लोगे तो स्कूल जाओगे”
उसने सोचा
“दो चॉकलेट दे दूंगी तो मान जाएगा”
पर पूत के पैर पालने में ही दिख जाते हैं बेटा उस जमाने की काफी महंगी चीज मांग बैठा उसने किसी बड़े आदमी के घर में कलर टीवी देखा था । उसने माँ को बताया कि उसे भी सेम वैसा ही कलर टीवी चाहिए, तभी वह स्कूल जाएगा वरना नहीं जाएगा ।
उसकी फरमाइश सुनकर सुमन को पहले तो कुछ समझ में ही नहीं आया मगर लाडले की किसी बात को मना करना या टालना सुमन को हरगिज़ गवारा न था। सुमन झट से तैयार हो गई उसने उससे कहा
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“ठीक है जब स्कूल से घर आओगे तो मैं तुम्हें तुम्हारी पसंद की कलर टीवी खरीदूंगी” मगर जुबानी खर्च राजा जी को कहां समझ आता उसने तो बस ठान ही ली कि पहले टीवी फिर स्कूल मजबूरन सुमन को लाडले की यह बात मान कर उल्टे पांव घर लौटना पड़ा।
संजोग से पास में इतना पैसा भी नहीं था। उधर घर पहुंचते ही बेटे ने टीवी से पहले कुछ भी न खाने पीने की जिद्द ठान ली सुमन की तो धड़कने काफी तेज होती जा रहीं थी किसी तरह से पैसों का इंतजाम करके जैसे ही दुकान खुलने का टाइम हुआ लाडले को दुकान पर लेकर पहुंच गई । बेटा सारा दिन इस दुकान से उस दुकान पर चक्कर काटता रहा पर एक तो कलर टीवी सभी दुकानों पर मिली नही और जहाँ मिली तो वो लाडले को पसंद नहीं आई।
जब शाम तक टीवी नहीं मिली तो सुबह से भूखे प्यासे लाडले की चिंता मे माँ का मन घबरा गया और बेटा था जो कुछ भी मुहं मे डालने को तैयार न था। हालांकि कई दुकानदारो ने आर्डर पर, एक-दो दिन में टीवी लाने का वादा भी किया पर उन्हे कौन समझाए कि सुमन आज किस मुश्किल में पड़ी थी । जब कहीं टीवी नहीं मिला तो एक दुकानदार ने उसे बड़े शहर जाने की राय दी, दुकानदार से बड़े शहर के टीवी वाले की दुकान का पता लेकर सुमन अपनी सहेली के साथ बेटे को लिए बड़े शहर जा पहुंची ।
शहर की भीड़ भाड़ से निपटते हुए वे टीवी के उस शोरूम पर पहुंच गए जिसका पता दुकानदार ने दिया था । शुक्र था भगवान का और कुछ उस भले दुकानदार का जिसके नाते टीवी मिली । बाहर निकलकर माँ सीधे सामने वाले होटल में गई । भूख-प्यास के मारे मां-बेटे की तो जान ही निकली जा रही थी। कुछ खाने पीने के बाद दोनों की जान में जान आई।
इन सबके बीच रात काफी हो चुकी थी। ऐसे में सुमन ने वहां अपने रिश्तेदार के यहां रुकना पसंद किया। वहां आधी रात को बेटा घर जाने का राग अलापने लगा जिसने पूरे दिन भूखे-प्यासे गली-गली के चक्कर काटे हो उसे रात में ठीक से सोने को भी न मिले तो न जाने उसे कैसा महसूस होगा ।
सुबह होते ही चलेंगे की बात बेटे को माँ समझाती रही मगर वह अपने आगे कहां किसी की सुनने वाला था आखिरकार माँ रात में ही सहेली के साथ घर की तरफ लौट चली। रास्ते भर उसकी सहेली उसे बेटे को इतना सर पर न चढ़ाने की नसीहत देती रही । मगर वह उसे जितना समझाती सुमन बेटे को उतना ही गले से लपेटे उसे प्यार दुलार करती।
सुबह होते ही दोनों घर आए और सबसे पहले पड़ोसी ने आ कर उनकी टीवी सेट की, अगले दिन से राजा बेटा स्कूल जाने लगा। मगर इस घटना से ऐसे मनबढ़ बच्चे के चर्चे सारे शहर में होने लगे। समय बीतता गया और उसकी जिद्द का सिलसिला यूं ही बढ़ता गया बेटे के जन्म के समय बुआ न आ सकीं थी।
अब काफी सालों बाद वह घर आ रही थीं । बेटा भी बुआ से मिल कर बहुत खुश हुआ। जब बुआजी वापस जाने लगी तो मैं भी बुआ के साथ जाऊंगा की जिद्द लाडला करने लगा, चूकीं बुआ का घर काफी दूर था। ऐसे में उसे वहां भेजना संभव नहीं था। सुमन यहां घर अकेला छोड़ कर जा भी नहीं सकती थी। समझाने पर पहले तो बेटा मान गया पर
“बुआ को स्टेशन छोड़ने मैं भी जाऊंगा” की वह जिद्द करने लगा। यह कोई बड़ी फरमाइश नहीं थी। इसलिए इस बात के लिए माँ तुरंत मान गई, जब ट्रेन सिटी देना शुरू की तो लाडले ने सबको चौंका दिया
“मैं भी बुआ के साथ जाऊंगा वरना ट्रेन के आगे कूद जाऊंगा” की बात वह करने लगा और दौड़े-दौड़े ट्रेन के आगे कूदने का प्रयास करने लगा। सुमन घबरा गई अपने इकलौते से ऐसी बात वह कैसे सुन सकती थी। डर के मारे सुमन ने बुआ के साथ बेटे को जाने दिया। ट्रेन में कुछ दूर जाने के बाद राजा ने “सुसु करूंगा” की बात बुआ से कहने लगा। चूंकि ट्रेन मे काफी भीड़ थी और सामान के साथ बुआ ट्रेन में बिल्कुल अकेली सफर कर रहीं थी। इसलिए बुआ ने “अभी थोड़ी देर में चलेंगे” कि बात उससे करने लगी। मगर “बहुत जोर से लगी है अभी हो जाएगी” की बात वह कहने लगा, सुमन के बाद अब बुआ की आफत में जान थी। पर वह उसे नहीं ले गई थोड़ी ही देर में अगले स्टेशन पर भीड़ काफी कम हो गई बुआ उसे सूसू कराने ले जाने लगी पर वह जाने को तैयार नहीं हुआ और अगले छः घंटे के सफर में वह सूसू करने नहीं गया।
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बुआ ने भी ऐसा लड़का जीवन में पहली बार देखा था। घर पहुंचकर बुआ ने घरवालों से आपबीती बताई यह सुनकर सब हंस पड़े मगर थोड़े हैरान भी थे। कुछ दिनों तक तो बुआ के वहां राजा की अच्छी बनी मगर थोड़े ही दिनों में वह बोर हो गया और घर वापस जाने की जिद्द करने लगा। बुआ के पास कोई ऐसा नहीं था जिसके साथ वह उसे वापस भेज सके, किसी तरह से तो वह एक बार मायके आई थी।
तुरंत जाना संभव नहीं था, ऐसे में वह जल्दी ले चलूंगी का बहाना मारने लगी मगर भतीजा खुद ट्रेन में बैठने की धमकी देने लगा। अब तक बुआ उसके स्वभाव को भलीभांति समझ चुकी थी। ऐसे में उसका मन घबराने लगा।
“कहीं यह सही मे ट्रेन मे न जा बैठे, ऐसा हुआ तो भाई-भाभी को क्या जवाब दूंगी”
यह बात सोच सोचकर वह परेशान उठी । ऐसे में उसने भतीजे पर पैनी नजर रखनी शुरू कर दी । अचानक एक दिन दोपहर में बुआ की आंख लग गई नींद टूटी तो उसने भतीजे को वहां नहीं पाया। वो और सारे पड़ोसी उसे ढूंढने में लग गए मगर वह कहीं नहीं मिला।
घबराई बुआ को उसके ट्रेन में बैठ जाने की बात याद आने लगी। वह पड़ोसियों के साथ स्टेशन दौड़ी, बड़े से स्टेशन पर ढूंढ़ते ढूंढ़ते लोगों से पूछते पूछते काफी वक्त लग गया। पर भतीजे का कहीं कोई अता-पता नहीं चल रहा था। अचानक सामने खड़ी ट्रेन में उसने राजा को बैठा पाया वह ट्रेन तो कहीं और ही जा रही थी। मगर राजा को तो बस ये पता था कि वह ट्रेन से आया है और ट्रेन से ही जाना है ।
जब तक बुआ पहुंचती तब तक ट्रेन सीटी दे रही थी। बुआ दौड़ते-दौड़ते ट्रेन में चढ़ गई और उसका हाथ पकड़ कर उसे ट्रेन से बाहर ले जाने लगी मगर वह ट्रेन से उतरने को तैयार न था। जबकि वह ट्रेन किसी दूसरी तरफ जा रही थी। ट्रेन ने चलना स्टार्ट कर दिया।
आखिर में ट्रेन में बैठे लोगों के डांट फटकार और अगले दिन उसे घर ले जाने के बुआ के वादे के बाद वह चलती ट्रेन से वापस उतरा । अगले ही दिन बुआ ने यह बात उसके पिता को फोन पर बताई हालांकि वह छुट्टियों पर आने वाले ही थे, पर बेटे की कहानी सुनकर और देर न करते हुए, वे फौरन उसे लेकर घर चले आए । समय के साथ वह युवा और समझदार हो गया था मगर जिद्द तो उसकी पहचान बन चुकी थी ।
एक दिन टीवी पर वह लाइव क्रिकेट देख रहा था कि अचानक बिजली चली गई । मारे गुस्से में वह मकान की छत पर चढ़ गया और सुमन से बिजली लाओ नहीं तो छत से कूद जाऊंगा की बात कहने लगा माँ के तो रोए आंसू नहीं आ रहे थे क्योंकि उसकी इस फरमाइश को पूरा करना सुमन तो क्या किसी आम आदमी के बस की बात नहीं थी अब वह करें तो क्या करें ।
घर के आस-पास के लोगों ने भी उसकी बात सुन ली है वे भी उसे नीचे उतरने को कहते, मगर वह मानने को तैयार नहीं था । आखिरकार उनमें से किसी ने यह बात बिजली विभाग को बताई । भला हो बिजली विभाग का जिन्होंने बिजली बहाल कर दी, पर आखिर कब तक उसका यह अड़ियल रवैया चलने वाला था ।
सुमन और पिता के साथ लाडला अपने बड़े पिता के लड़के के शादी में गया । वहां दूसरे लड़कों द्वारा हो रही बंदूक बाजी को देखकर उसे भी ऐसा करने का मन हुआ । उसने पिता से उनकी रिवाल्वर मांगी, मगर पिता सुमन नहीं थे जो उसकी हर जिद्द को पूरा करना अपना सपना बना लें । उन्हें सही गलत की पूरी समझ थी ।
ऐसे में उन्होंने बेटे को रिवॉल्वर देने से साफ मना कर दिया । उसके हमेशा की तरह जिद्द करने पर उसे सरेआम डांट कर वहां से भगा दिया । गुस्से में राजा ने बिजली का कटा तार पकड़ लिया जब तक बिजली काँटी जाए तब तक वह बुरी तरह झुलस चुका था ।
Moral Of The Story