बंसी ने अपने पुश्तैनी पेशे को अपनाते हुए बढ़ई का काम शुरू किया । बंसी शुरू से ही काफी मेहनती था । उसके काम में औरों के जैसी सफाई तो नहीं थी । लेकिन उसका व्यवहार हर किसी को पसंद आने वाला था । बढ़ई का काम करने वाला उस गांव में सिर्फ बंसी का परिवार ही था ।
इस बात का फायदा बंशी को हमेशा मिलता मगर आखिर ऐसा कब तक चलने वाला था । कुछ सालों बाद ही गांव के पास का मार्केट धीरे-धीरे बड़ा होने लगा और वहां कुछ दूसरे बढई भी अपना काम जमाने आ गए क्योंकि उनके काम में सफाई ज्यादा अच्छी थी और उनमें नए-नए नक्काशी करने का हुनर भी था जो कि बंसी में बिल्कुल भी नहीं था ।
जिसके कारण लोग बंसी को कम पसंद करने लगे और अपना काम कस्बे में आए नए कारीगरों को देने लगें । बंसी के पास काम की कमी जरूर हो गई मगर फिर भी उसका काम चल जाया करता क्योंकि बंसी शुरू से ही बहुत कम पैसों में काम किया करने वाला था । यही नही उसे अपने काम के बदले जो मिल जाता उसे वह खुशी-खुशी रख लेता कभी पलट कर और पैसो की मांग वो नही करता ।
धीरे धीरे बंसी का बेटा बुधिया थोड़ा बड़ा हो गया । बड़ा होते ही वह अपने पिता के काम मैं हाथ बटाने लगा । बुधिया अपने पिता के काम में न सिर्फ उसका हाथ बटाता बल्कि उस काम को बड़े ही मन से सीखने की भी कोशिश करता जैसे-जैसे बुधिया बड़ा होने लगा वैसे वैसे बढईगिरी के काम में वह पारंगत होने लगा ।
बड़े होते-होते उसने पिता का सारा काम संभाल लिया । गांव के लोग बुधिया की कार्यकुशलता को देखकर अक्सर उसके पिता से कहते हैं
“देखो .. गुरु गुड़े रह गया चेला चीनी हो गया”
बुधिया के काम में काफी सफाई थी । नई से नई नक्काशियों को भी सिर्फ एक बार देखकर बिल्कुल वैसी ही डिजाईन बनाने में वह मास्टर हो चूका था ।
लोगों उसे काफी पसंद करते । कस्टमर जो चाहता और जैसा चाहता बुधिया उसे उसकी इच्छा से कहीं ज्यादा बेहतर करके और काफी कम समय में देता । जिसके कारण लोग उसके काम के दीवाने हो गए । जो लोग उसके पिता के काम से असंतुष्ट होकर मार्केट में आए नए-नए कारीगरों के पास चले गए थे । वे भी बुधिया के काम के बारे मे सुनकर वापस आने लगे ।
धीरे धीरे पूरे गांव जवार में बुधिया का नाम अपने काम के लिए प्रसिद्ध हो गया । बुधिया के काम की दो सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि एक तो उसके काम में फिनिशिंग बहुत बढ़िया थी साथ ही वह हर काम को सुपरफास्ट अंदाज में करता था ।
एक दिन जब बुधिया दोपहर में काम करने के बाद तखत पर लेटे हुए आराम कर रहा था । तभी उसे अपने पास किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ । बुधिया उठ कर बैठा तो उसने देखा कि उसके सामने गांव के ही एक सेठ जी खड़े हैं । सेठ जी थोड़ा घबराए हुए थे ।
बुधिया ने उनके यहां आने का कारण पूछा तो सेठ जी ने बताया उसकी बिटिया की शादी अगले दो दिनों बाद ही है । उसने अपनी बेटी की शादी के लिए सारा सामान बाहर से मंगवाया था । मगर पिछली रात गोदाम में लगी आग के कारण अन्य सामानों के साथ ही उसमें रखा लकड़ी का सारा सामान जलकर खाक हो गया ।
अब समस्या यह थी कि शादी में सिर्फ दो दिनों का ही वक्त बचा था ऐसे में बाहर से सामान इतनी जल्दी नहीं आ सकता और यहां आसपास ऐसा कोई कारीगर नहीं जो हूबहू वैसी ही डिजाइन और साफ-सफाई दे सकता हो जैसा सेठ चाहता था । सेठ ने आगे कहा
“एक तुम ही हो जिसका मैंने इस क्षेत्र में बड़ा नाम सुना है मैंने सूना है कि तुम अपने काम को बड़ी सफाई से करते हो और बड़ी अच्छी-अच्छी डिजाइने बनाकर लोगों को देते हो । जिसके कारण सारा गांव तुम्हीं से अपना काम करवाता है । मैं चाहता हूं कि यह जिम्मेदारी तुम लो मगर हां, करने से पहले यह सोच लो कि तुम्हारे पास सिर्फ दो दिनो का ही वक़्त है । अगर तुम ये सारी चीजें वक्त रहते बना कर मुझे दे पाए तो मैं तुम्हें न सिर्फ इनका उचित मूल्य दूंगा बल्कि तुम्हें मुँह मांगा इनाम भी दूंगा ।
बुधिया के तो जैसे दिन ही बहुरने वाले थे न जाने आज किसका मुँह देखकर वह उठा था । उसकी खुशी का तो जैसे ठिकाना ही नहीं था रही बात दो दिनों जैसे कम वक्त में सारी चीजें तैयार करके देने की तो वह तो बुधिया के बाए हाथ का खेल था तो इसलिए ज्यादा कुछ न सोचते हुए बुधिया ने इस काम के लिए फौरन हां कर दी ।
सेठ के जाने के बाद बुधिया अपने काम में लग गया । वह अपने काम में इतना डूब गया कि उससे न तो दिन का पता था न रात की खबर, न भूख लग रही थी और न उसे प्यास । वह दिन रात बस सेठ को किए वादे को पूरा करने में लगा रहा ।
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आखिरकार उसने वक्त रहते ही सेठ जी को उनका ऑर्डर पूरा करके दे दिया यह देख सेठ जी बहुत खुश हुए । शादी के अगले दिन सेठ जी पुनं बुधिया के घर पहुंचे बुधिया सेठ जी को देख थोड़ा चिंतित हुआ । उसने सोचा
“सेठ जी यहां क्यों आए हैं, सामान का मूल्य तो सेठ जी ने पहले ही दे दिया था । ऐसे में सेठ जी यहां क्यो आए हैं उसके बनाए हुए सामान में कोई कमी तो नहीं रह गई ? .. .”
इन बातों को सोच बुधिया थोड़ा घबरा गया परंतु हिम्मत दिखाते हुए वह सेठ जी की आवभगत मे लग गया । थोड़ी ही देर में बुधिया की आशंकाओं के विपरीत सेठ जी ने उसके सर पर हाथ फेरा और कहा
“तुमने इतनी कम उम्र में जो कला सीखी है उसका मूल्य तो कोई नहीं चुका सकता परंतु अपने वादे के मुताबिक मैं चाहता हूं कि इस काम के बदले इनाम के तौर पर मै तुम्हें कुछ दूं । तुम बताओ तुम्हें अपने काम के बदले मुझसे क्या इनाम चाहिए”
बुधिया को, सेठ जी द्वारा उससे किया गया वादा याद आ गया । उसने सेठ जी से कहा
“वैसे तो मुझे अपनी कारीगरी के दम पर किसी बात की कोई की कमी नहीं है, हाँ ये जरुर है कि कस्बे में मेरी कोई दुकान नही है जिसकी वजह से मेरी आमदनी दुसरे कारीगरों से थोड़ी कम है”
सेठ जी ने बुधिया की बात सुनकर मुस्कुरा बैठे और बोले
“बस इतनी सी बात है यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल है”
सेठ जी ने अपने आदमी से कहा
“मार्केट में हमारी जो दुकानें हैं उनमें से एक दुकान बुधिया को दे दो”
सेठ जी से यह बातें सुनकर बुधिया के पैर तो मानो जमीन पर ही नहीं टिक रहे थे । अब बाजार के अन्य कारीगरों से बराबरी कर सकता था ।
एक दिन गांव का जमीदार बाजार से गुजर रहा था तभी सेठ जी की दुकान रास्ते में पड़ी सेठ जी के बुलाने पर जमीदार साहब सेठ की दुकान में गए । काफी देर तक सेठ जी ने जमीदार की आवभगत की बातों बातों में जमीदार ने बताया कि उसके घर अगले महीने एक कुछ कार्यक्रम है ।
सेठ जमीनदार से बुधिया के बारे मे बताने लगा । सेठ से बुधिया की ढेरो प्रसंसा सुनकर, काम देने की नियत से जमीनदार ने उसे वहाँ बुलवाने को कहा, बुधिया के वहाँ आने पर सेठ ने बुधिया से जमीदार की इच्छा बताई । बुधिया को तो मानो क्या मिल गया था । इतनी कम उम्र मे बुधिया ने शायद इतना मशहूर होने का तो कभी सोचा भी न था । बुधिया जमीदार साहब के काम के लिए झट से राजी हो गया ।
जमींदार का काम पाकर बुधिया का गांव में रुतबा और भी बढ़ गया अब वह लोकल नहीं रहा बल्कि जमींदार का उस पर ट्रेडमार्क लग चूका था । जमीदार का काम मिलते ही बुधिया को चारों ओर से काम मिलने लगा । अब तो हर कोई बुधिया से ही अपना काम कराना चाहता था और इसके लिए वे उसे मुँह मांगे पैसे देने को भी तैयार हो जाते ।
जिसके कारण उसके पास काम का अंबार लग गया । बुधिया दिन-रात काम में लगा रहा । शादी की तारीख नजदीक आने लगी । सेठ एक दिन घूमता हुआ बुधिया की दुकान पर पहुंचा । उस ने सेठ जी का खूब स्वागत किया । थोड़ी देर बाद सेठ जी ने बुधिया से जमींदार साहब के काम के बारे में पूछा बुधिया ने सेठ जी से कहा
“सेठ जी अभी तो जमींदार साहब के कार्यक्रम में काफी समय है आप चिंता न करें में उनका ऐसा काम करूंगा की सब देखते रह जाएंगे”
सेठ जी बुधिया की बातों को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए वैसे भी सेठ जी को बुधिया के काम पर पूर्ण भरोसा था। इसके बाद सेठ जी जब भी उधर से गुजरते वह बुधिया से जमींदार साहब से लिए काम के बारे में जरूर पूछते परंतु बुधिया हर बार सेठ जी को समय से काम पूरा हो जाने का विश्वास दिलाता ।
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सेठ को भी यह बखूबी पता था कि बुधिया के लिए तो दो दिन ही काफी हैं आखिर उसकी बेटी के लिए दिए गए सामान को उसने मात्र दो दिनों में ही तैयार करके उसने दे दिया था ।
यह बात सेठ को आज भी याद थी इसीलिए वह काम के लिए बुधिया पर कोई विशेष दबाव नहीं डाल रहा था । जब शादी को सिर्फ 5 दिन ही शेष रह गए । तब बुधिया के पिता ने उससे कहा
“देखो बेटा जमींदार का काम तुमने ले तो लिया है मगर जमीदार के काम को बहुत हल्के मे मत लो उसके काम की अनदेखी करना ठीक नहीं है । अगर तुम उसको संतुष्ट करने में असफल रहे तो तुम नहीं जानते कि जमींदार फिर क्या करेगा .. .”
बुधिया को पिता की सारी बातें समझ में आ गई । उसने सारा काम छोड़कर जमीदार के काम को पूरा करने में तन मन से जुट गया वैसे तो जमीदार का काम सेठ जी के दिए काम से कई गुना ज्यादा था परंतु बुधिया जैसे बढ़ई के लिए यह बहुत ही आसान था परंतु इस आसान से काम को भी एक-एक दिन आगे बढ़ाते बढ़ाते उसने खुद ही कठिन कर लिया था । इस बात का अंदाजा उसे काम को शुरु करते ही लग गया ।
ऐसे में ज्यादा कुछ न सोचकर उसने सारा ध्यान अपने काम पर लगाया । उसने इस काम के लिए अपना दिन रात एक कर दिया देखते ही देखते शादी का दिन भी आ गया । जमींदार ने अपने आदमियों से लकड़ी के सामानों के बारे में जब पूछा तब जमींदार के लोगों ने बताया कि बुधिया ने तो अभी तक तो सामान वहाँ पहुंचाया ही नहीं ।
ऐसे में नाराज जमींदार ने अपने आदमियों को फटकार लगाते हुए फौरन उन्हें बुधिया के पास भेजा । जमींदार के लोगों को अपने सामने देख उसकी हालत पतली हो गई । काम अभी भी काफी ज्यादा बाकी था । जमीदार का आदमी वहां पहुंचकर काफी कड़वी जुबान में बुधिया से पूछा
“अब तक समान क्यों नहीं पहुंचाया”
घबराए बुधिया की जुबान लड़खड़ा गई । उसने बोला
“बस-बस हो गया है, सरकार बस अभी पहुंचाए देता हूँ”
उनके जाने के बाद बुधिया के हाथ पांव फूल गए । जो काम वह दो मिनट में कर सकता था । वही काम करने में उसे आधे-आधे घंटे लग रहे थे ।
कभी काम में आने वाली बहुत सारी दिक्कतो, जिसका हल उसे पल भर में समझ आ जाता था आज डर के मारे उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था मानो उसका दिमाग काम ही करना बंद कर दिया हो । सुबह से शाम शाम से रात हो गई परंतु काम खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था ।
जमींदार के आदमियों का गुस्सा पल-पल बढ़ता चला गया । देखते ही देखते सुबह भी हो गई और अब था विदाई का समय तब तक ढेरों सामान बुधिया ने पहुंचा दिया परंतु फिर भी बहुत कुछ बाकी रह गया । थोड़ी ही देर में सारा सामान लेकर बुधिया पहुचा गया परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी बारात वहां से जा चुकी थी ।
खोइ इज्जत से नाराज जमींदार ने बुधिया को जमकर लताड़ा बुधिया कुछ भी न कर सका क्योंकि इसके लिए वह स्वयं ही जिम्मेदार था । बुधिया के ऐसे गैर जिम्मेदाराना रवैया से सेठ जी को भी बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ी । लिहाजा सेठ का गुस्सा भी बुधिया पर फूटना लाजमी था । सेठ वहां से निकलकर फौरन बुधिया की दुकान पर पहुंचा और उसका सारा सामान बाहर निकाल, दुकान में ताला जड़ दिया ।
बेचारा बुधिया फिर से अपना सारा सामान और औजार लेकर गांव वापस चला आया । जमींदार की गई इज्जत को गांव वालों ने भी हल्के में नहीं लिया क्योंकि किसी की भी इज्जत, इज्जत होती है इसीलिए गांव वालों ने भी बुधिया से मुँह फेर लिया । अब उसे गांव का कोई भी व्यक्ति उसे काम नहीं देता ।
जिसके कारण दिन रात काम में व्यस्त रहने वाले बुधिया के पास अब कोई काम नहीं था । बुधिया ने एक बहुत ही आसान से काम को आगे बढ़ा-बढ़ा कर उसे खुद ही काफी कठिन बना लिया ।
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